Women Empowerment Essay | महिला सशक्तिकरण पर निबंध

आज का यह नोट्स – Women Empowerment Essay (महिला सशक्तिकरण) पर है ।

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  • संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार- महिला सशक्तिकरण के पांच घटक हैं:
    • महिलाओं में आत्म-मूल्य की भावना;
    • विकल्प रखने और निर्धारित करने का उनका अधिकार;
    • अवसरों तथा संसाधनों तक पहुँच रखने का उनका अधिकार;
    • घर के भीतर तथा घर के बाहर दोनों स्थितियों में अपने जीवन को नियंत्रित करने की शक्ति रखने का उनका अधिकार; तथा
    • राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक न्यायोचित सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के सृजन हेतु सामाजिक परिवर्तन की दिशा को प्रभावित करने की उनकी योग्यता।
  • आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 ने लिंग असमानता को निम्नलिखित आयामों में परिभाषित किया है-
    • क्षमता (AGENCY)- प्रजनन, वित्तीय संसाधन तथा अपने स्वास्थ्य एवं सक्रियता पर व्यय करने के लिए अनन्य निर्णयन का सामर्थ्य।
    • मनोवृति (ATTITUDE): महिलाओं/पत्त्रियों के विरुद्ध हिंसा और पुत्रों की आदर्श संख्या की तुलना में वरीयता दी गई पुत्रियों की आदर्श संख्या की मनोवृत्ति।
    • निष्कर्ष (OUTCOMES): इसका संबंध पुत्र की चाह (अंतिम सन्तान के लिंग अनुपात द्वारा मापित), महिला नियोजन, गर्भनिरोधक विकल्प, शिक्षा स्तर, विवाह के समय आयु, पहले बच्चे के जन्म के समय आयु तथा महिलाओं द्वारा भोगी गई शारीरिक और यौन हिंसा से है।
  • विश्व बैंक के अनुसार- विकल्पों के सृजन और उन विकल्पों को इच्छित कार्यों एवं परिणामों में रूपांतरित करने हेतु व्यक्तियों या समूहों की क्षमताओं में वृद्धि करने की प्रक्रिया सशक्तिकरण है।
  • ऋग्वेद कहता है, “किसी पदार्थ के समान अद्धांश होने के कारण पत्नी और पति प्रत्येक संबंध में समान होते हैं। इसीलिए दोनों को सभी धार्मिक एवं लौकिक कार्यों में संयुक्त और समान रूप से भाग लेना चाहिए। उपनिषद भी स्पष्ट रूप से घोषणा करते हैं कि हमारी व्यक्तिगत आत्मा न तो पुरुष है और न ही स्त्री।
  • उत्तर वैदिक युग के उदय के साथ ही वैदिक युग की महिलाओं की स्थिति में पतन प्रारम्भ हो गया। क्रमशः समाज में लिंग समानता बढती चली गयी।
  • इसने महिलाओं के विरुद्ध सामाजिक बुराई की एक श्रृंखला को जन्म दिया यथा- बाल विवाह, सती प्रथा, जौहर इत्यादि। इन सबके बावजूद सफल महिलाओं के भी अनेक उदाहरण मौजूद थे जैसे – लोपामुद्रा, मैत्रेय, गार्गी, अहिल्याबाई होल्कर इत्यादि।
  • भारतीय पुनर्जागरण ब्रिटिश शासन के दौरान राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे सुधारकों के प्रयत्नों तथा समानता के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाली पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के कारण प्रारम्भ हुआ । इसके फलस्वरूप सती प्रथा के उन्मूलन, विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा पुनर्विवाह से सम्बंधित विविध कानून अस्तित्व में आए।
  • राष्ट्रीय परिदृश्य में महिला सशक्तिकरण का अगला चरण महात्मा गाँधी के उदय के साथ आरम्भ हुआ। महात्मा गाँधी के अनुसार भारत के स्वाधीनता सघर्ष में महिलाएं महत्वपूर्ण अहिंसात्मक भूमिका निभा सकती हैं। सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली, कल्पना दत्त, प्रीतिलता वड्डेदार, सुचेता कृपलानी, उषा मेहता इत्यादि महिलाओं ने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण (Social & Cultural Empowerment)
    • व्यक्तिगत स्तर परः उनके अपने स्वास्थ्य से संबंधित निर्णयों, वृहद् घरेलू खरीदों से संबंधित निर्णयों, घरेलू क्षेत्र से बाहर उनकी गतिशीलता जैसे परिवार एवं रिश्तेदारों के घर और बाजार में यात्रा, अपने मित्रों के पास जाने या उनके यहाँ ठहरने से संबंधित निर्णयों, अपनी आजीविकाओं से संबंधित निर्णयों, गर्भनिरोधक, मासिक धर्म स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वास्थ्य, सरोगेसी, गर्भपात आदि से संबंधित निर्णयों में उनकी संलग्नता।
    • पारिवारिक तथा सामाजिक स्तर परः उनकी वृत्ति (कैरियर) एवं शिक्षा, बच्चे (विशेषतः पुत्र को प्राथमिकता देना), विवाह (अर्थात् परिवार के निर्णय के विरुद्ध जाने की स्थिति में ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे), माता-पिता या पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा, परिवार नियोजन, व्ययों के प्रबंधन जैसे सामूहिक निर्णयों में संलग्नता, अपनी जीवनशैली के चयन जैसे-परिधान, मित्र, विचार-शैली या व्यवहार इत्यादि से संबंधित निर्णयों में उनकी सहभागिता।
    • कानूनों के सृजन तथा क्रियान्वयन के स्तर परः आरंभिक स्तर पर वैवाहिक बलात्कार को अपराध न मानना, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005 विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A जैसे सामाजिक कानूनों के क्रियान्वयन का अभाव तथा इनका दुरुपयोग, भारत में ऑनर किलिंग की एक अपराध के रूप में अलग से कोई परिभाषा या वर्गीकरण का न होना (इसे IPC की धारा 300 के अंतर्गत हत्या माना जाता है तथा धारा 302 के अंतर्गत यह एक दंडनीय अपराध है)।

विरोधाभास तथा अंतर्विरोध (Paradoxes & Contradictions)

  • भारत वह भूमि है जहाँ महिलाओं की देवियों के रूप में पूजा होती है। उन्हें एक पवित्र दर्जा दिया जाता है जबकि दूसरी ओर उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने से वर्जित किया जाता है (सबरीमाला मुद्दा)।

  • महिलाओं को समाज में गृह-निर्माता तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक देखभालकर्ता के रूप में देखा जाता है। यहाँ तक कि नर्स की नौकरी अधिकतर महिलाओं को दी जाती है। दूसरी ओर जब महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण की बात आती है तो उनकी उपेक्षा की जाती है।

  • भारत में शिक्षा के क्षेत्र में विगत अनेक वर्षों से यह देखा जा रहा है कि CBSE की परीक्षाओं में लड़कों की तुलना में लडकियों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत अधिक है। परन्तु एक परिवार में लड़के की तुलना में लड़की की शिक्षा पर व्यय के संदर्भ में अभी भी भेदभाव किया जाता है।

  • आर्थिक सशक्तिकरण (Economic Empowerment)
    • महिलाओं के कैरियर में निर्धारण तथा प्रतिबन्धः महिलाओं के घरेलू कार्य (केयर इकॉनमी) अवैतनिक हैं और इसकी कीमत कम आंकी जाती है। पिंक कॉलर नौकरियां (जिन्हें पारंपरिक रूप से महिलाओं का कार्यक्षेत्र माना जाता है), कृषि और अनौपचारिक क्षेत्र में माहिलाओं की बढती भागीदारी, उद्यमशीलता को एक करियर विकल्प के रूप में प्रोत्साहन नहीं दिया गया है आदि।
    • कार्यस्थल पर पक्षपातः वेतन में विभेद, शिशुसदन (क्रेच) सुविधाएँ, मातृत्व अवकाश, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, ग्लास-सीलिंग (महिलाओं की पदोन्नति में अदृश्य सामाजिक बाधाएं) प्रभाव आदि।
    • कानूनों के सृजन तथा क्रियान्वयन के स्तर परः पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं के हिस्से के संबंध में निरंतर भेदभाव; कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013 का त्रुटिपूर्ण क्रियान्वयन।
  • कामकाजी महिलाएं ग्लास-सीलिंग की अवधारणा से भी पीड़ित हैं जहाँ पेशेवर जीवन में उन्नति हेतु अप्रत्यक्ष बाधाएं उपस्थित हैं। इसके अतिरिक्त देखभाल उद्योग (care industry) में कुछ नौकरियां केवल महिलाओं हेतु ही आरक्षित हैं, जिन्हें प्रायः पिंक कॉलर मुद्दों के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • इस मुद्दे से अलग कार्यस्थल पर अन्य मुद्दे भी हैं यथा महिलाओं की क्षमताओं की अनुभूति जिन्हें प्रायः गौण या निम्न समझा जाता है; यौन उत्पीड़न के मुद्दे; वेतन, पदोन्नति, महिलाओं के कार्य के लिए उनकी प्रशंसा करने या उन्हें क्रेडिट देने इत्यादि के संबंध में भेदभाव आदि।
  • कामकाजी महिलाओं को दोहरे बोझ की समस्या का सामना करना पड़ता है। बाहर कार्य करने के अतिरिक्त उनसे घरेलू कार्य करने की भी अपेक्षा की जाती है। इसे ‘सेकंड शिफ्ट’ के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
  • प्रौद्योगिकियों में उन्नति के कारण उनके कार्यों में उत्पन्न चुनौतियाँ कृषि में हुई प्रौद्योगिकीय उन्नति के कारण महिला श्रम अनावश्यक बनता जा रहा है। इससे उनके कार्य अवसरों में कमी हो रही है।
  • कामकाजी महिलाओं को उनके श्रम का स्वामी स्वीकार नहीं किया जाता। अपने वेतन को कैसे और कहाँ व्यय करना है यह निर्णय लेने में उनकी भागीदारी या तो नगण्य है या पूर्णतया अनुपस्थित है। अन्य समस्याओं में शामिल हैं- सुरक्षा, यात्रा, कार्यस्थल पर सुविधाओं (शिशुसदन, शौचालय) आदि की समस्याएं।
विरोधाभास तथा अंतर्विरोध (Paradoxes & Contradictions)
परिवार में महिलाओं को देखभाल प्रबंधक (पालन-पोषण, शिक्षा आदि), संबंध प्रबंधक (संबंध स्तर पर पति और विस्तृत परिवार) तथा वित्तीय प्रबंधक (बचत, मोलभाव योग्यताएं) के रूप में देखा जाता है, जबकि कार्यस्थल पर उन्हें निरंतर ग्लास-सीलिंग का सामना करना पड़ता है।
एक ओर वित्तीय लाभों हेतु महिलाओं के नाम पर सम्पत्तियों को पंजीकृत किया जाता है या खरीदा जाता है जबकि दूसरी ओर महिलाओं को इन लाभों से वंचित कर दिया जाता है।
वर्ष 2008 के भारत के उत्तर वैश्विक वित्तीय संकट में आर्थिक पुनर्प्राप्ति महिला अध्यक्षता वाले बैंकों के नेतृत्व में हुई थी- एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा, भारतीय स्टेट बैंक की अरुंधती भट्टाचार्य आदि।
हालाँकि नेतृत्व वाले पदों हेतु महिलाओं के लिए अस्वीकृति अभी भी निरंतर जारी है। विश्व आर्थिक मंच की जेंडर गैप रिपोर्ट-2015 के अनुसार सार्वजनिक रूप से व्यापार करने वाली कंपनियों के बोर्ड में केवल 7% स्थान ही महिलाओं के लिए गठित किए गए हैं।
यद्यपि भारतीय फिल्म उद्योग में महिलाओं के पास विशाल फैन फालोइंग एवं स्टारडम है तथा अधिक संख्या में दर्शकों को आकर्षित करने हेतु उनका प्रयोग किया जाता है, परन्तु उन्हें उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में बहुत ही कम भुगतान दिया जाता है।

राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment)

  • राजनीतिक दल और विधायिकाः पार्टी स्तर पर टिकट की संख्या के संदर्भ में भेदभाव (पार्टी टिकटों/प्रोन्नति के बदले में यौन अनुग्रह या समझौते); महिला विधायिकों/सांसदों की कम संख्या; विधायिकाओं में उचित प्रतिनिधित्व न होना आदि।
  • कार्यपालिकाः नौकरशाही, पुलिस, सशस्त्र बल।
  • न्यायपालिकाः प्रतिनिधित्व, महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव, महिलाओं के विरुद्ध यौन उत्पीड़न ।
विरोधाभास तथा अंतर्विरोध (Paradoxes & Contradictions)
यद्यपि अभिनेत्रियाँ आकर्षण का प्रमुख केंद्र होने के साथ-साथ विभिन्न राजनीतिक दलों हेतु प्रचार अभियानों की सक्रिय सदस्य होती हैं, किन्तु फिर भी जब टिकट आवंटन तथा सत्ता में पद की बात आती है तो उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
महिलाओं ने अनेक पथप्रवर्तक पहलों का नेतृत्व किया है तथा अनुकरणीय साहस का परिचय दिया है, जैसे-दुर्गा शक्ति नागपाल (IAS), किरण बेदी (IPS) आदि। हालाँकि सरकार में कार्यकारी पदों में विशेष रूप से उच्च स्तर पर उनकी संख्या/प्रतिशत निराशाजनक बनी हुई है।
पंचायती राज स्तर पर महिलाओं हेतु स्थानों के 33.3% आरक्षण के संवैधानिक आदेश के होने के बावजूद ये पद अभी भी उनके पतियों द्वारा ‘सरपंच पति’ के रूप में प्रभावी रूप से नियंत्रित किए जा रहे हैं।

  • महिला आरक्षण के लाभ (Merits of Women’s Reservation)
    • यह संसद तथा राज्य विधान मंडलों में महिला सदस्यों की संख्या में वृद्धि करेगा। वर्तमान में लोक सभा में केवल 11.8% तथा राज्य सभा में 11% महिला सदस्य हैं।
    • महिलाओं से संबंधित मुद्दे संसद में अत्यधिक प्राथमिकता प्राप्त करेंगे तथा उनका सरलता से समाधान किया जा सकेगा।
    • इससे संसद और राज्य विधानमंडलों के परिवेश को वाद-विवादों तथा चर्चाओं हेतु अधिक हितकर बनाने में सहायता मिलेगी।
    • पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण इस तथ्य का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है कि आरक्षण का महिला सशक्तिकरण हेतु एक उपकरण के रूप में किस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है।
  • महिला आरक्षण की हानियाँ (Demerits of Women’s Reservation)
    • यह मतदाताओं के अपना प्रतिनिधित्व चुनने के लोकतांत्रिक अधिकार को क्षति पहुंचाता है क्योंकि विधेयक के क्रियान्वयन के पश्चात् महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों को भरना अनिवार्य हो जाएगा।
    • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि क्या उन सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग एवं अपवंचित वर्गों की महिलाओं को लाभ प्राप्त होंगे जिन्हें वास्तविक रूप से जिन्हें इसकी अधिक आवश्यकता है।
    • अनेक विधायक और सांसद जिन्हें संसद और राज्य विधान मंडलों में पहले से ही स्थान प्राप्त हैं अन्य स्थानों को भरने हेतु अपनी पत्नियों तथा अन्य रिश्तेदारों को लाने का प्रयास करेंगे।
  • महिला आरक्षण विधेयक, 2008 (Women Reservation Bill, 2008)
    • यह विधेयक लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं की कुल सीटों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान करता है।
  • पंचायती राज में महिलाओं को आरक्षण (Women reservation in Panchayati Raj)
    • संविधान के अनुच्छेद 243 D के अंतर्गत पंचायती राज संस्थानों के सभी स्तरों की कुल सीटों में से एक-तिहाई सीटें तथा पंचायती राज संस्थानों के अध्यक्ष के पदों में से एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।
    • बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य पंचायती राज संस्थानों (PRIs) में महिलाओं को 50% आरक्षण प्रदान करते हैं।
    • सरकार पंचायतों में महिलाओं के लिए मौजूदा 33% आरक्षण को बढ़ाकर 50% तक करने पर विचार कर रही है।
  • पुलिस में महिलाओं को आरक्षण (Women reservation in Police)
    • सरकार ने गैर-राजपत्रित (non-gazetted) पदों में सीधी भर्ती के माध्यम से सभी केंद्र प्रशासित प्रदेशों के पुलिस बलों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को स्वीकृति दे दी है।
    • गुजरात एवं बिहार जैसे राज्यों ने पुलिस बलों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को लागू कर दिया है।
  • सैन्य/अर्द्ध सैनिक बलों में महिलाएं (Women in Armed/Paramilitary Forces)
    • भारतीय वायु सेना ने फाइटर पायलटों के रूप में महिलाओं को युद्ध में भूमिका निभाने हेतु नए अवसर प्रदान किए हैं।
    • सरकार ने सभी 5 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में महिला अधिकारियों की सीधी भर्ती को स्वीकृति प्रदान की है। इसके साथ ही सीधी भर्ती के माध्यम से महिलाओं को जूनियर रैंक का अधिकारी और संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से महिला अधिकारियों की पर्यवेक्षी युद्ध भूमिका को अनुमति प्रदान की है।
    • सरकार केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में 33% तथा सीमा सुरक्षा बल (BSF), सशस्त्र सुरक्षा बल (SSB) एवं भारत-तिब्बत सीमा सुरक्षा बल (ITBP) जैसे सीमा सुरक्षा बलों में 15% कॉन्स्टेबल रैंक के कर्मियों के रूप में महिलाओं को शामिल करने की योजना बना रही है।

भारत में महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण (Political Empowerment of Women in India)

  • 545 सदस्यीय लोक सभा में महिलाओं की सदस्यता 11.8%, जबकि 245 सदस्यीय राज्य सभा में इनकी संख्या 11% है।
  • महिलाओं की संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों में केवल 9% और राज्य परिषद के सदस्यों में 5% है। मिजोरम, नागालैंड और पुदुचेरी जैसे राज्यों में कोई भी महिला विधायक नहीं है।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में पुलिस बलों के अंतर्गत महिलाओं की संख्या केवल 7.28% है।
  • अंतर-संसदीय संघ (Inter Parliamentary Union: IPU) एवं यूएन वीमेन (UN Women) द्वारा प्रकाशित वीमेन इन पॉलिटिक्स, 2017 नामक रिपोर्ट के अनुसार कार्यकारी सरकार तथा संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में भारत को विश्व स्तर पर 148वां स्थान प्रदान किया गया है।

पारिस्थितिकीय सशक्तिकरण (Ecological Empowerment)

  • प्रकृति अथवा पृथ्वी को माँ का दर्जा दिया गया है।
  • इको-फेमिनिज्म (पर्यावरणीय स्त्रीवाद) – सर्वप्रथम “इको-फेमिनिज्म” शब्द 1980 में फ्रांसिस डी’ इउबोन द्वारा प्रयुक्त किया गया था तथा निरंतर पारिस्थितिकीय आपदा के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन एवं गतिविधियों के कारण इसे लोकप्रियता प्राप्त हुई। यह पारिस्थितिकीय स्त्रीवाद और महिलाओं के आध्यात्मिक मुद्दों का संयुक्त रूप है। जैसे ही पर्यावरणीय आंदोलन ने पृथ्वी के क्षय हेतु पर्यावरणीय संकट के साथ महिलाओं की चेतना को जागृत किया, इसने पृथ्वी के अवमूल्यन तथा महिलाओं के अवमूल्यन के मध्य समन्वय करना प्रारंभ कर दिया। अतः प्रकृति और महिलाओं के मध्य अभिसरण को चिह्नांकित करने के लिए इको-फेमिनिज्म की अवधारणा को प्रस्तुत किया गया।
  • महिलाएं एवं जलवायु परिवर्तन- जलवायु परिवर्तन सभी को प्रभावित करता है- परंतु ये विश्व के सबसे गरीब और सुभेद्य परिस्थितियों में रहने वाले विशेषतः महिलाएँ एवं बालिकाएँ ही हैं, जो पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक क्षति के आघातों का सर्वाधिक सामना करती हैं। कई विकासशील देशों में प्रायः महिलाओं और बालिकाओं को जल, ईंधन संग्रह एवं खाद्य व्यवस्था का उत्तरदायित्व निभाना पड़ता है। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन, सूखा, बाढ़ इत्यादि के माध्यम से महिलाओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।
संधारणीय उपायः वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया (Sustainable solutions The response at Global Level)
सतत ऊर्जा हेतु महिलाओं की उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए यूएन वीमेन (UN Women) और यूएन एनवायरनमेंट (UN Environment) वैश्विक कार्यक्रम के अंतर्गत मिलकर कार्य करेंगे।
प्रारंभिक चरण में यह कार्यक्रम सेनेगल, मोरक्को, म्यांमार, भारत, इंडोनेशिया तथा बोलीविया में आरम्भ किया जाएगा।
ऐसा अनुमान है कि भारत में 100,000 महिलाओं को वर्तमान कार्यक्रम के प्रयासों के भाग के रूप में स्वच्छ एवं अक्षय ऊर्जा तक पहुंच प्राप्त होगी।
  • 18वीं शताब्दी के बिश्नोई आंदोलन का नेतृत्व अमृता देवी ने किया।
  • चिपको आंदोलन मुख्यतः महिलाओं के नेतृत्व वाला आंदोलन था, जिसमें चमोली गांव की महिलाओं ने वृक्षों को कटने से बचाने के लिए उन्हें गले लगा लिया था। वंदना शिवा नामक एक इकोफेमिनिस्ट भी इसमें शामिल थीं।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन का नेतृत्व मेधा पाटकर ने किया।
  • पर्यावरणीय अवक्रमण को ध्यान में रखकर गठित प्रथम पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र विश्व आयोग (World Commission on Environment and Development: WCED) की अध्यक्षता ग्रो हर्लेम व्रटलैंड नामक एक महिला द्वारा की गई थी।

कृषि का स्त्रीकरण (Feminization of Agriculture)

  • विगत कुछ दशकों में महिलाओं ने कृषि उत्पादन में अपनी भागीदारी को विस्तारित एवं मजबूत किया है जिसके साथ-साथ इनके घरेलू जीवन के उत्तरदायित्व में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है तथा इन्होंने वाणिज्यिक कृषि में आर्थिक अवसरों को भी अपने अनुकूल किया है। इस प्रवृत्ति को कृषि का स्त्रीकरण कहा जाता है।
  • ग्रामीण भारत में अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर महिलाओं का प्रतिशत सबसे उच्च है और यह लगभग 84% है। महिला कृषकों की संख्या 33% है और लगभग 47% महिलाएँ कृषि श्रमिक हैं।

मुद्दे

  • यद्यपि कृषि उत्पादन में महिलाओं के कार्य समय में वृद्धि हुई है, परंतु वहीं घर के भीतर पुनरुत्पादक कार्य के संबंध में श्रम के लिंग विभाजन में न्यून परिवर्तन ही आया है।
  • पुरुष पुनरुत्पादक तथा घरेलू कार्यों को करने के इच्छुक नहीं होते हैं, भले ही महिलाओं को कृषि और गैर-कृषि उत्पादक गतिविधियों में अपनी भागीदारी में वृद्धि करनी पड़े।
  • उत्पादक संसाधनों एवं बाजारों तक भिन्न-भिन्न पहुंच।

महिलाओं पर विवाद, संघर्ष और युद्ध का प्रभाव (Impact of Distress, Conflict and War on Women)

  • संघर्ष एवं युद्ध से संबंधित निर्णय में महिलाओं की भूमिका नगण्य होती है। हालांकि विवाद, संघर्ष और युद्ध का प्रभाव कभी भी लैंगिक रूप से तटस्थ नहीं होता है।
  • संघर्ष के दौरान महिलाओं के विरुद्ध दुष्कर्म एवं यौन हिंसा को शत्रुओं को अपमानित करने, जीत का प्रदर्शन करने, जनसंख्या को आतंकित करने, पारिवारिक संबंधों को विच्छिन्न करने और कुछ मामलों में अगली पीढ़ी की नृजातीय बनावट को परिवर्तित करने हेतु एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध यौन दासता को आतंकवादी समूहों में भर्ती हेतु प्रोत्साहन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

संघर्ष के पश्चात (Post-Conflict)

  • यौन हिंसा संघर्ष के पश्चात भी जारी रहती है क्योंकि यह बढ़ती लैंगिक हिंसा तथा पारिवारिक संबंधों पर पड़ने वाले इसके हानिकारक प्रभावों को प्रदर्शित करती है।
  • दुष्कर्म के परिणामस्वरूप परिवारों और समुदायों द्वारा त्याग देने संबंधी समस्याएं, अवांछित गर्भधारण एवं बच्चे, इन बच्चों की अस्वीकृति, चोट पहुँची हुई (ट्रॉमेटाइज़ड़) महिलाओं पर दोषारोपण एवं उन्हें त्यागना, यौन संक्रमण और HIV का प्रसार, आत्महत्या करना और आत्महत्या करने हेतु विवश होना (पति या समुदाय के सदस्यों के दबाव में)।
  • युद्ध द्वारा विस्थापित तथा बगैर पुरुष संरक्षण के शरणार्थी शिविरों में रह रही महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया जाता है।

मीडिया / प्रौद्योगिकी में सशक्तिकरण (Empowerment in Media/Technology)

  • मीडिया (Media)
    • मीडिया में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सदैव ही पूर्वाग्रह की धारणा से ग्रस्त रहा है। उदाहरण के लिए, फिल्मों में महिलाओं को मुख्य भूमिका की बजाय माताओं या पत्नियों जैसी महत्वहीन या रूढ़िवादी भूमिकाएं दी जाती हैं। यहां तक कि विज्ञापनों में भी महिलाओं को घर अथवा बच्चे या खाद्य सामग्री/पोषण संबंधी वस्तुओं में अधिक दिखाया जाता है जबकि पुरुषों को बाहरी विश्व में दिखाया जाता हैं। ऐसे गीतों की रचना हो रही है जो छेड़छाड़/यौन उत्पीड़न का या तो औचित्य सिद्ध करते हैं अथवा उसे ग्लैमराइज़ करने का प्रयास करते हैं।।
    • हालांकि हालिया रुझानों में काफी हद तक सुधार हुआ है। उदाहरणार्थ ऐसी कई महिला केंद्रित फिल्में बनने लगी हैं जो बदलती भूमिकाओं तथा समानता की दिशा में समाज के झुकाव का प्रतिनिधित्व करती हैं (राज़ी, क्वीन, हिचकी इत्यादि जैसी फिल्में)।
  • प्रौद्योगिकी (Technology)
    • शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल तक पहुंच एवं सामर्थ्य हेतु सक्षम बनाना।
    • विशेष रूप से सेवा क्षेत्र जैसे- सूचना प्रौद्योगिकी सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सेवा क्षेत्र (Information technology and IT Enabled Services: IT-ITES) में रोजगार के अवसर प्रदान करना।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं मशीनीकृत श्रम के कारण महिला श्रमिकों के समक्ष आगामी चुनौतियां।
    • महिला केंद्रित प्रौद्योगिकियों अथवा आविष्कारों को प्राथमिकता या महत्व नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए, फिल्म पैडमैन अरुणाचलम मुरुगनंतम नामक एक सामाजिक उद्यमी पर आधारित थी, जिन्होंने कम लागत वाले सैनिटरी पैड बनाने की मशीन का आविष्कार किया था क्योंकि गरीब महिलाओं को वाणिज्यिक पैड की उच्च लागत के कारण अस्वच्छ अथवा फटे- पुराने कपड़ों का प्रयोग करना पड़ता था।
विरोधाभास एवं अंतर्विरोध (Paradoxes & Contradictions)
जहां एक ओर, मीडिया ने महिलाओं को अपनी आवाज उठाने का अवसर दिया है, तो साथ ही यह एक ऐसा स्थान भी बन चुका है जहाँ महिलाओं को विभिन्न रूपों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता हैं जैसे ट्रोलिंग, साइबर स्टॉकिंग, साइबर-उत्पीड़न, इमेज-माँर्किंग इत्यादि।
प्रौद्योगिकी ने जहाँ कृषि, विनिर्माण जैसी गतिविधियों में महिलाओं की भूमिका को कम किया है तो वही कन्या भ्रूणहत्या, लिंग चयन पर आधारित गर्भपात में भी वृद्धि की है।

  • खेल-कूद में महिलाएँ (Women in Sports)
    • खेलों को अधिकांशतः आक्रामकता, शारीरिक क्षमता इत्यादि जैसी विशेषताओं के लिए जाना जाता है और इन्हें पुरुषों का क्षेत्र (मेल-बस्टियन) माना जाता है। जो महिलाएँ खेल-कूद को अपने करियर के रूप में अपनाती है उन्हें न केवल अपने परिवार बल्कि खेल प्रशासकों, कोच इत्यादि के भी विरोध का सामना करना पड़ता है।
    • वेतन समानता के मुद्दे; संसाधनों के संबंध में भेदभाव; यौन उत्पीड़न के मुद्दे; खेल शासी निकायों में महिलाओं का न्यून प्रतिनिधित्व; खेल से पोस्ट-रिटायरमेंट (सेवा निवृत्ति के बाद की स्थिति) इत्यादि जैसे मामलों में महिलाओं की स्थिति एक जैसी ही बनी हुई है।
विरोधाभास एवं अंतर्विरोध (Paradoxes & Contradictions)
यद्यपि महिलाओं को परिवार, खेल-कूद संबंधी कर्मियों और समग्र रूप से समाज द्वारा खेलों में भेदभाव का सामना करना पड़ता किन्तु इन सबके बावजूद दो महिला खिलाड़ियों पी. वी. सिंधु और साक्षी मलिक ने 2016 ओलंपिक खेलों में भारत का नाम रोशन किया था।
  • UPSC – 2001- केवल सशक्तिकरण द्वारा महिलाओं की सहायता नहीं हो सकती।
  • UPSC – 2000- महिला सशक्तिकरणः चुनौतियाँ एवं सम्भावनाएँ।
  • UPSC – 1999- महिला ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है।
  • UPSC – 1998- केवल व्यापक राजनीतिक शक्ति महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं कर सकती।
  • UPSC – 1993- पुरुष की विफलताः अब महिला की बारी।
  • यद्यपि हम महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़े हैं, परंतु अभी एक लंबी दूरी तय करनी शेष है। महिलाओं को सशक्त बनाना हमारे आने वाले कल, हमारे भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • महिला सशक्तिकरण, प्रकृति के सशक्तिकरण, हाशिए पर स्थित लोगों और देशों के सशक्तिकरण से न तो भिन्न है और न उनसे ही पृथक किया जा सकता है।
  • महिलाओं के संघर्ष तथा आंदोलन हमेशा से ही शांति आंदोलनों, पर्यावरण आंदोलनों, श्रमिक एवं किसान आंदोलनों, मानवाधिकार आंदोलनों और लोकतांत्रिककरण और समाज के विकेन्द्रीकरण हेतु आंदोलनों के साथ निकटता से सम्बद्ध रहे हैं।
  • महिलाओं को उनकी क्षमता से अवगत करवाना अब समय की मांग बन चुकी है। जबकि सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, महिलाओं के लिए जागरूकता इत्यादि जैसे उपायों को अपनाना चाहिए। यह समाज के लिए जागरूकता उत्पन्न करने एवं सार्वजनिक मूल्यों का सृजन करने हेतु आवश्यक है, जिससे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • यहां तक कि अनेक महिलाओं ने पितृसत्ता के मानदंडों का आंतरीकरण (internalized) को आत्मसात कर लिया है, ताकि वह अपने प्रभुत्व को अन्य महिलाओं पर स्थापित कर सके जैसे : सास का अपनी पुत्रवधु पर प्रभुत्व। इस प्रकार की संस्कृति की निरीक्षण करने की आवश्यकता है। जैसा कि प्रसिद्ध समाजशास्त्री आंद्रे बेटेल ने कहा है- “कानून केवल उस दिशा को निर्धारित करता है जिसे समाज को अपनाना चाहिए, समाज की वास्तविक दिशा इसकी संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है”।
  • अंत में, महिलाओं को अपने सशक्तिकरण की मांग की पूर्ति हेतु स्वयं अग्रसर होने की आवश्यकता है। कोफ़ी अन्नान के अनुसार विकास के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण से बेहतर कोई भी उपकरण नहीं है।
  • “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः “– मनुस्मृति के अनुसार- “जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवी-देवता निवास करते हैं। जिन घरों में स्त्रियों का अपमान होता है, वहां सभी प्रकार की पूजा करने के बाद भी भगवान निवास नहीं करते हैं।”

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