इस लेख में हम लोग 1857 का विद्रोह के परिणाम के बारे में जानेगे .
1857 का विद्रोह के परिणाम
1857 की विद्रोह की असफलता के बावजूद इसने भारत में ब्रिटिश प्रशासन को गहरा आघात पहुंचाया। विद्रोह के बाद के ब्रिटिश शासन की संरचना और नीतियों में भारी फेर-बदल किया गया ।
1857 के विद्रोह के पश्चात् पहला मुख्य परिवर्तन यह था कि भारत का शासन 1858 अधिनियम के द्वारा ईस्ट इंडिया कम्पनी से ब्रिटिश क्राउन के पास चला गया। अब भारत के लिए राजकीय सचिव (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट), जिसे एक परिषद् द्वारा सहयोग प्राप्त होगा, भारत में शासन के लिए जिम्मेदार था। पहले यह अधिकार कम्पनी के निदेशकों के पास होता था ।
दूसरा मुख्य परिवर्तन सेना में किया गया। भविष्य में भारतीय सिपाहियों द्वारा कोई भी विद्रोह न हो, इसके लिए कई कदम उठाए गए। इसके अंतर्गत यूरोपीय जवानों की संख्या बढ़ा दी गई और बंगाल की सेना में दो भारतीय सिपाहियों पर एक यूरोपीय, बंबई और मद्रास की सेनाओं में पांच भारतीय सिपाहियों पर दो यूरोपीय को नियुक्त किया गया। यूरोपीय फोजों को प्रमुख भौगोलिक एवं सैन्य स्थितियों में रखा गया। सेना की प्रमुख शाखाओं जैसे तोपखानों को केवल यूरोपीय हाथों में सौंपा गया । सेना के भारतीय वर्ग का संगठन ‘फूट डालो राज करो’ की नीति पर आधारित था । जवानों में राष्ट्रीय भावना ना जागे, इसलिए जाति, समुदाय और क्षेत्र के आधार पर रेजिमेंटो की स्थापना हुई।
‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को सामान्य जनता में भी लागू किया गया। चूंकि अंग्रेजों ने यह सोचा कि विद्रोह का षड्यंत्र मुसलमानों द्वारा रचा गया था, इसलिए इन्हें कठोर दंड दिए गए और उनके साथ लोक नियुक्तियों एवं कई अन्य क्षेत्रों में भेदभाव किया गया। इस नीति को बाद में उलट दिया गया और मुसलमानों के लिए एक विलम्बित प्रशासन की शुरुआत हुई। 19 सदी के अंत में मुसलमानों को हिंदुओं से बेहतर सुविधा देने की योजना बनाई गई, जिससे कि भारतीयों में भेदभाव उत्पन्न करके आंदोलन को कमजोर किया जा सके। इन नीतियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समस्याएं पैदा कीं और सांप्रदायिकता के विकास में योगदान किया ।
ब्रिटेन की महारानी की घोषणा के अनुसार, रियासतों के प्रति ब्रिटिश नीतियों में परिवर्तन किया गया । विलय की पूर्व नीति को छोड़कर शासकों को उत्तराधिकारी चुनने का अवसर मिला। यह उन देशी शासकों को उपहारस्वरूप मिला जो विद्रोह के समय अंग्रेजों के साथ थे। हालांकि भारतीय शासकों का यह अधिकार एक निश्चित क्षेत्रों में पूरी तरह ब्रिटिश अधिकार के अधीनस्थ कर दिया गया और उनको सुविधा आश्रितों में परिवर्तित कर दिया गया ।
ब्रिटिश शासन ने भारत में लोगों के सामाजिक कृत्यों एवं धार्मिक प्रथाओं को सम्मान देने का निर्णय किया ।
अंग्रेजों ने भारतीय लोगों को विश्वास दिलाया कि आगे क्षेत्रीय विस्तार नहीं होगा । अंग्रेजों ने भू-पतियों; जमीदारों एवं राजकुमारों के संरक्षण की नीतियां बनाई, ताकि अपनी स्थिति को इस देश में अधिक मजबूत बना सकें । दरअसल 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के वास्तविक प्रतिक्रियावादी स्वभाव को धरातल पर ला दिया । अधिकतर भारतीयों को यह अहसास हो गया कि भारत में ब्रिटिश शासन वास्तविक रूप में जन विरोधी था और यह निश्चित रूप में दमनकारी और उनके देश हित का विरोधी था ।
भूमि के लिए निर्धारित लगान और समय की गारंटी के लिए एक नवीन कृषि नीति प्रस्तुत की गई। इस नीति ने किसान को बोझिल भूमि बंदोबस्त और राज्य की अत्यधिक कर मांग से मुक्ति प्रदान की ।
स्थानीय सरकारों को करारोपण की कुछ मदों को सौंपकर वित्तीय व्यवस्था को भी विकेन्द्रीकृत किया गया।
विद्रोह के पश्चात् यद्यपि अंग्रेजों ने अपने शासन का विस्तार नहीं किया, तथापि ब्रिटिश शासन द्वारा आर्थिक शोषण के एक नए युग का सूत्रपात हुआ
अंग्रेजों ने शिक्षित मध्यवर्ग का विरोध करने और भूमिपतियों तथा राजकुमारों का समर्थन करने की नीति अपनाई । दीर्घकाल में यह नया ब्रिटिश दृष्टिकोण उसके साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ, जैसाकि इस कारण शिक्षित मध्य वर्ग में कुंठा की भावना बलवती हुई और परिणामस्वरूप जल्द ही आधुनिक राष्ट्रवाद की भावना का जन्म हुआ ।
सेना विलय योजना 1861 ने कंपनी के यूरोपीय सैनिकों / सेना को क्राउन के अधीन कर दिया। इसके अलावा, भारत में यूरोपियन सेना को समय-समय पर इंग्लैंड दौरे के माध्यम से बेहतर किया गया, जिसे ‘लिंक्ड बटालियन’ योजना के नाम से भी जाना जाता है। जबकि भारत में यूरोपीय सेना के विस्तार में वृद्धि की गई, भारतीय सेना को घटाकर आधा कर दिया गया। सभी भारतीय आर्टिलरी इकाइयों, कुछ पर्वतीय बटालियनों को छोड़कर, को समाप्त कर दिया गया। सेना और तोपखाना विभागों में सभी पदों को यूरोपियों के लिए आरक्षित कर लिया गया। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक तक कोई भारतीय सैनिक ‘किंग कमीशन’ के लिए योग्य होने के बारे में सोच भी नहीं सकता था और एक नए भर्ती अंग्रेज अफसर को ‘वायसराय कमीशन’ के माध्यम से भर्ती भारतीय अधिकारी से श्रेष्ठ माना जाता था ।
1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजी सरकार ने ऐसी शिक्षा-पद्धति को लागू किए जाने को प्रोत्साहित किया, जिससे भारतीय अपने धर्म और संस्कृति को भूल जाएं तथा पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकृष्ट हों । पाश्चात्य देशों के वैचारिक आंदोलन से भारत के लोगों को नयी प्रेरणा मिली तथा वे लाभान्वित भी हुए, पर उन देशों की आडम्बरपूर्ण जीवन-पद्धति से भारतीयों का चरित्र – बल भी समाप्त होने लगा । भारत के लोगों के साथ ऐसा होना अंग्रेजों के लिए सुखदायक था ।
अंग्रेजों ने भारत में आरम्भ से गोरे और काले के आधार पर श्रेष्ठता और हीनता की भावना फैला रखी थी । 1857 की क्रांति के बाद तो प्रत्येक अंग्रेज भारतीयों से सावधान और अलग-थलग रहने लगा। अंग्रेजों को ऐसा महसूस होने लगा कि भारतीयों से दूरी बनाए रखना ही उनके हित में है, क्योंकि नजदीक आने से भारतीय अंग्रेजों के भेदों को जान लेंगे और उन्हें परेशान करने लगेंगे। क्रांति के दौरान अंग्रेज सतर्क हो गए और उस सतर्कता को उन्होंने लगभग हमेशा बनाए रखा ।
1857 की क्रांति के परिणाम भारतीयों के पक्ष में भी रहे । भारतीयों के पक्ष में जो सकारात्मक परिणाम सामने आए, वे हैं-
आत्मबल में वृद्धिः 1857 की क्रांति अपने लक्ष्य को तत्काल प्राप्त करने में असमर्थ रही। परन्तु इस क्रांति ने भारतीयों के आत्मबल में वृद्धि की और उनकी सुषुप्त चेतना को स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए जागृत किया। अब भारतीयों में स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना बलवती हो गयी और उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति को अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया । इस समय से एक जागृत भारत का अभ्युदय हुआ ।
राजनीतिक जागृतिः लंबी पराधीनता और शासकों को अपराजेय मानने की धारणा ने भारतीयों में आलस्य भर दिया था । पराधीनता को भारतीयों ने अपनी नियति मान लिया था । परन्तु, 1857 की क्रांति ने भारतीयों के शीतित रक्त को फिर से खौला दिया। क्रांति के बाद भारतीयों को ऐसा महसूस हुआ कि जोर लगाने पर स्वशासन की प्राप्ति आसानी से हो सकती है।
संगठन की प्रेरणाः यद्यपि 1857 की क्रांति को संगठित स्वरूप प्रदान की पूर्ण कोशिश की गई थी, तथापि संचार व्यवस्था एवं सूचना प्रौद्योगिकी के अभाव के कारण मनोवांछित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी थी। व्यापक संगठन के अभाव के कारण ही क्रांति को कुचल दिया गया था । इसलिए, इस क्रांति से आगे के क्रांतिकारियों को व्यापक संगठन की प्रेरणा प्राप्त हुई। 1857 ई. की क्रांति से प्रेरणा पाकर ही आगे के वर्षों में अनेक क्रांतिकारी आंदोलनों का संचालन संभव हो सका ।
एकता की प्रेरणाः 1857 की असफलता का कारण सम्पूर्ण भारतवासियों में एकता का अभाव भी था । सिक्ख और दक्षिण भारतीय क्रांति के विरुद्ध थे तथा अनेक देशी रियासतों के शासकों ने अंग्रेजों की सहायता की थी। जिन क्षेत्रों में क्रांति का सूत्रपात हुआ, वहां भी सभी वर्गों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध नहीं किया । एकता ही राष्ट्रीयता का मूल मंत्र है – इस तथ्य की ओर भारतीयों का ध्यान क्रां के असफल हो जाने के बाद गया। अब उन्होंने ऐसा महसूस किया कि एक साथ चलकर ही आगे बढ़ा जा सकता है और लक्ष्य की प्राप्ति में सफलता प्राप्त की जा सकती है ।
स्वतंत्रता आंदोलन को नयी दृष्टिः 1857 की क्रांति का जिस निर्ममता के साथ अंग्रेजी सरकार ने दमन किया था, उससे उसका असली चेहरा भारतीयों के सामने उजागर हुआ। अंग्रेजों के क्रूरतापूर्ण व्यवहार को देखने के बाद भारतवासियों ने अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने का संकल्प लिया। इस क्रांति से स्वतंत्रता आंदोलन को भविष्य में एक नयी दृष्टि मिली । विद्रोह के बदले असहयोग का मार्ग अपनाया गया, क्योंकि इससे अंग्रेजों को दमनात्मक अत्याचार का अवसर प्राप्त नहीं होता। शासन और शस्त्रास्त्र का नियंत्रण अंग्रेजी सरकार के हाथों में था और किसी भी प्रकार के विद्रोह का गला घोंट देने की क्षमता उसमें थी, इसलिए क्रांति के बाद विद्रोह का रास्ता छोड़ने की प्रेरणा मिली ।