1857 का विद्रोह असफल क्यों हुआ ? | 1857 Ka Vidroh Asaphal Kyon Hua ?

चलिए आज हम लोग 1857 का विद्रोह असफल क्यों हुआ ? ( 1857 Ka Vidroh Asaphal Kyon Hua ?) इस के बारे मे पढ़ते है और जानते है की वो कौन कौन सी मुख्य कारण थी जिसके कारण 1857 का विद्रोह असफल हुआ।

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विद्रोह असफल क्यों हुआ ?

क्रांतिकारियों ने जिस उद्देश्य से 1857 की क्रांति का सूत्रपात किया था, उसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने सोचा था कि अंग्रेजों को बाहर खदेड़ कर भारत को स्वाधीन कर देंगे। परन्तु, क्रांति के दमन के बाद अंग्रेजों ने ऐसी नीति अपनायी कि 90 और वर्षों तक भारतीयों को गुलाम बनाए रखने में सफल रहे। इस महान् की असफलता के अनेक कारण थे, जिनमें कुछ प्रमुख हैं-

विद्रोह में सभी वर्गों का शामिल न होना

कुछ वर्गों ने विद्रोह में सहभागिता नहीं की, वस्तुतः, इसके विरुद्ध कार्य किया । बड़े जमींदारों एवं तालुकदारों ने इसमें भाग नहीं लिया । महाजनों एवं व्यापारियों ने विद्रोहियों का पूरी तरह शोषण किया था, अतः ब्रिटिश संरक्षण में वे अधिक सुरक्षित थे । आधुनिक शिक्षित भारतीयों ने इस विद्रोह को पीछे लौटने के तौर पर देखा और उनका मानना था कि ब्रिटिश शासन भारत को आधुनिकता की ओर ले जाएगा । अधिकतर भारतीय शासकों ने विद्रोह में शामिल होने से मना कर दिया और प्रायः ब्रिटिश शासन की सक्रिय मदद की। पटियाला के शासक, सिंध एवं अन्य सिख सरदार, कश्मीर के महाराजा, ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के होल्कर विद्रोह में शामिल नहीं हुए। अधिकतर दक्षिण भारत इससे अधिक प्रभावित नहीं हुआ। एक आकलन के अनुसार, कुल क्षेत्र का एक-चौथाई और कुल जनसंख्या का एक-दसवां से अधिक भाग प्रभावित नहीं हुआ।

एक संगठित एवं एकबद्ध विचाराधारा का अभाव

विद्रोहियों को औपनिवेशिक शासन की स्पष्ट समझ नहीं थी, और न ही उनके पास भविष्योन्मुखी कार्यक्रम, एक सुसंगत विचारधारा, एक राजनीतिक परिदृश्य या एक सामाजिक विकल्प ही था । विद्रोही अलग-अलग समस्याओं एवं वर्तमान राजनीति की अवधारणाओं सहित विविध पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते थे ।

भारतीयों के बीच एकता का अभाव भारतीय इतिहास के इस चरण में शायद उपेक्षित नहीं किया जा सकता था। भारत में अभी भी आधुनिक राष्ट्रवाद के बारे में लोग अनभिज्ञ थे। वस्तुतः 1857 के विद्रोह ने भारतीय लोगों को साथ लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एक देश से संबद्ध होने की चेतना जागृत की ।

निश्चित समय की प्रतीक्षा न करना

1857 की क्रांति की देशव्यापी शुरूआत के लिए 31 मई 1857 का दिन निर्धारित किया गया था। एक ही दिन क्रांति शुरू होने पर उसका व्यापक प्रभाव होता । परन्तु, सैनिकों ने आक्रोश में आकर निश्चित समय के पूर्व 10 मई, 1857 को ही विद्रोह कर दिया। सैनिकों की इस कार्यवाही के कारण क्रांति की योजना अधूरी रह गयी । निश्चित समय का पालन नहीं होने के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति की शुरूआत अलग-अलग दिनों में हुई। इससे अंग्रेजों को क्रांतिकारियों का दमन करने में काफी सहायता हुई। अनेक स्थानों पर तो 31 मई की प्रतीक्षा कर रहे सैनिकों के हथियार छीन लिए गए। यदि सभी क्षेत्रों में क्रांति का सूत्रपात एक साथ हुआ होता, तो तस्वीर कुछ और ही होती।

देशी राजाओं का देशद्रोही रूख

1857 की क्रांति का दमन करने में अनेक देशी राजाओं ने अंग्रेजों की खुलकर सहायता की। पटियाला, नाभा, जींद, अफगानिस्तान और नेपाल के राजाओं ने अंग्रेजों को सैनिक सहायता के साथ-साथ आर्थिक सहायता भी की। देशी राजाओं की इस देशद्रोहितापूर्ण भूमिका ने क्रांतिकारियों का मनोबल तोड़ा और क्रांति के दमन के लिए अंग्रेजी सरकार को प्रोत्साहित किया ।

साम्प्रदायिकता का खेल

1857 ई. की क्रांति के दौरान अंग्रेजी सरकार हिन्दुओं और मुसलमानों को लड़ाने में तो सफलता प्राप्त नहीं कर सकी, परन्तु आंशिक रूप से ही सही साम्प्रदायिकता का खेल खेलने में सफल रही। साम्प्रदायिक भावनाओं को उभार कर ही अंग्रेजी सरकार ने सिक्ख रेजिमेण्ट और मद्रास के सैनिकों को अपने पक्ष में कर लिया। मराठों, सिक्खों और गोरखों को बहादुरशाह के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। उन्हें यह महसूस कराया गया कि बहादुरशाह के हाथों में फिर से सत्ता आ जाने पर हिन्दुओं और सिक्खों पर अत्याचार होगा। इसका मूल कारण था कि सम्पूर्ण पंजाब में बादशाह के नाम झूठा फरमान अंग्रेजों की ओर से जारी किया गया, जिसमें कहा गया था कि लड़ाई में जी मिलते ही प्रत्येक सिक्ख का वध कर दिया जाएगा। सैनिकों के साथ-साथ जनसाधारण को भी गुमराह किया गया। इस स्थिति में क्रांति का असफल हो जाना निश्चित हो गया। जब देश के भीतर देशवासी ही पूर्ण सहयोग न दें, तो कोई भी क्रांति सफलता प्राप्त नहीं कर सकती।

सम्पूर्ण देश में प्रसारित न होना

1857 ई. की क्रांति का प्रसार सम्पूर्ण भारत में नहीं हो सका था । सम्पूर्ण दक्षिण भारत और पंजाब का अधिकांश हिस्सा, भारत का पूर्वी एवं पश्चिमी भाग इस क्रांति से अछूते रहे। यदि इन क्षेत्रों में क्रांति का विस्तार हुआ होता, तो अंग्रेजों को अपनी शक्ति को इधर भी फैलाना पड़ता और वे पंजाब रेजिमेण्ट तथा मद्रास सैनिकों को अपने पक्ष में करने में असफल रहते। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि उन क्षेत्रों में पूर्व में हुए विद्रोहों को कंपनी ने वर्बरतापूर्वक कुचल दिया था ।

शस्त्रास्त्रों का अभाव

क्रांति का सूत्रपात तो कर दिया गया, किन्तु आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण क्रांतिकारी आधुनिक शस्त्रास्त्रों का प्रबंध करने में असफल रहे । अंग्रेजी सेना ने तोपों और लम्बी दूरी तक मार करने वाली बन्दूकों का प्रयोग किया, जबकि क्रांतिकारियों को तलवारों और भालों का सहारा लेना पड़ा। इसलिए, क्रांति को कुचलने में अंग्रेजों को सफलता प्राप्त हुई।

सहायक साधनों का अभाव

सत्ताधारी होने के कारण रेल, डाक, तार एवं परिवहन तथा संचार के अन्य सभी साधन अंग्रेजों के अधीन थे। इसलिए, इन साधनों का उन्होंने पूरा उपयोग किया। दूसरी ओर, भारतीय क्रांतिकारियों के पास इन साधनों का पूर्ण अभाव था । क्रांतिकारी अपना संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक शीघ्र भेजने में असफल रहे । सूचना के अभाव के कारण क्रांतिकारी संगठित होकर अभियान की योजना बनाने तथा संचालन में असफल रहे । इसका पूरा-पूरा फायदा अंग्रेजों को मिला और अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांति को क्रमशः कुचल दिया गया।

सैनिक संख्या में अंतर

एक तो विद्रोह करने वाले भारतीय सैनिकों की संख्या वैसे ही कम थी, दूसरे अंग्रेजी सरकार द्वारा बाहर से भी अतिरिक्त सैनिक मंगवा लिए गए थे। उस समय कम्पनी के पास वैसे 96,000 सैनिक थे। इसके अतिरिक्त देशी रियासतों के सैनिकों से भी अंग्रेजों को सहयोग मिला। अंग्रेज सैनिकों को अच्छी सैनिक शिक्षा मिली थी और उनके पास आधुनिक शस्त्रास्त्र थे, परन्तु अपने परम्परागत हथियारों के साथ ही भारतीय क्रांतिकारियों ने जिस संघर्ष क्षमता का परिचय दिया, उससे कई स्थलों पर अंग्रेजों के दांत खट्टे हो गए। फिर भी, अंततः सफलता अंग्रेजों के हाथों ही लगी ।